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तीन बालिकाओं ने कथक में राष्ट्रीय स्तर पर पाया पुरस्कार, स्पेन में देंगी प्रस्तुतियां
उज्जैन :- शहर की तीन बालिकाओं ने कथक नृत्य में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा को साबित किया है। पुणे में 21 से 31 मई तक अखिल भारतीय सांस्कृतिक संघ की ओर से हुई ऑल इंडिया मल्टी-लिंग्युअल ड्रामा, डांस एंड म्युजिक कांटेस्ट में देशभर से आए सैकड़ों कलाकारों के बीच शहर की रेणुका देशपांडे, प्रियल पेडणेकर आैर मनस्वी गुप्ता को अवार्ड देकर सम्मानित किया गया है। स्पर्धा में रेणुका ने शास्त्रीय कथक (जूनियर वर्ग) में पहला आैर सेमी क्लासिकल में दूसरा स्थान पाया। जबकि प्रियल को सोलो कथक (जूनियर वर्ग) में दूसरा स्थान मिला। इनके अलावा मनस्वी को सोलो कथक (जूनियर वर्ग) में चेयरमैन अवार्ड से सम्मानित किया गया। साथ ही स्पेन में 21 से 26 नवंबर के बीच होने वाली 7वीं कल्चरल ओलंपियाड के इंटरनेशनल फेस्टिवल के लिए भी इनका चयन किया गया है। यह तीनों बालिकाएं अब स्पेन में प्रस्तुति देंगी।
सात साल की उम्र से जारी रखा कथक का अभ्यास
13 साल की रेणुका देशपांडे को स्पर्धा में जूनियर वर्ग में शास्त्रीय कथक में पहला आैर सेमी क्लासिकल में दूसरा स्थान मिला। 8वीं की छात्रा रेणुका बताती है कि उसने सात साल की उम्र से कथक का प्रशिक्षण लेना शुरू किया था आैर उसने कथक को ही जीवन का लक्ष्य बना लिया। प्रशिक्षक प्रतिभा रघुवंशी ने बताया रेणुका परीक्षा के दिनों में भी कथक का अभ्यास जारी रखने में पीछे नहीं रही। रेणुका मथुरा में हुई ऑल इंडिया कांपिटिशन आैर दिल्ली में हुए इंटरनेशनल डांस कांपिटिशन में शास्त्रीय कथक में पहला स्थान प्राप्त कर चुकी है। पिता महेश इंजीनियरिंग कॉलेज में टेक्निकल असिस्टेंट आैर माता आरती गृहिणी हैं।
अभ्यास के लिए पैर में चोट को भी किया नजरअंदाज
फ्रीगंज निवासी 13 साल की प्रियल पेडणेकर के पिता डॉ. केदार व माता डॉ. अरुणा दोनों ही पेशे से चिकित्सक हैं लेकिन उसने कथक को अपने कैरियर के रूप में चुना। राष्ट्रीय स्पर्धा में प्रियल को सोलो कथक में दूसरा स्थान मिला। प्रशिक्षक पलक पटवर्धन ने बताया एक वर्ष पहले टेबल से प्रियल के पैर में चोट लग गई थी लेकिन फिर भी उसने प्रेक्टिस नहीं छोड़ी। पांच साल की उम्र से वह कथक का नियमित अभ्यास करती आ रही है। प्रियल ने बताया कि उसका सपना देश की सबसे बड़ी कथक नृत्यांगना बनने का है।
10 साल की उम्र में लगा लेती है लगातार 21 चक्कर
कथक में चक्कर लगाना एक खास विधा मानी जाती है लेकिन मात्र 10 साल की मनस्वी एक ही बार में 20 से 21 चक्कर लगा लेती है। पांचवी कक्षा की छात्रा मनस्वी को राष्ट्रीय स्पर्धा में चेयरमैन अवार्ड से सम्मानित किया गया। उसकी इसी खूबी से उसने निर्णायकों का दिल जीता। उसके पिता डॉ. समीर एवं माता डॉ. नेहा दोनों ही चिकित्सक हैं। प्रशिक्षक पलक के अनुसार मनस्वी की कथक को लेकर लगन इतनी ज्यादा है कि एक बार दरवाजे से पैर टकराने के लिए उसके पैरों में सूजन आ गई थी आैर वह घुंघरु नहीं बांध पा रही थी। इसके बावजूद उसने अभ्यास से कभी इनकार नहीं किया।